कविता की भाषा में कहूँ
तो आत्मसम्मान ऐसा
जैसी किशोरी अमोनकर की गायकी
और
ताहिरा सैय्यद की आवाज सुनकर
कोई इसी बरबाद दुनिया में
बसना चाहेगा
मैं
इतना खामोश रहा
समूचे दौर से निर्लिप्त
मेरा देश इत्मीनान से रहे
तो
कविता से पल्ला झाड़कर
मैं लकड़हारा बनूँगा
या मिट्टी के सख्त ढूहों को
तोड़ता मिलूँगा कुदाल से
और लादे हुए अपने कंधे पर मशक
प्यासों को पिलाऊँगा पानी
शब्द से परे
एकदम
शब्द से परे